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"31 साल से ठगा गया रोसड़ा:जिला का सपना कब होगा पूरा?"

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मोहम्मद आलम

रोसड़ा:यह वह इलाका है, जहाँ जनता की उम्मीदें हर चुनाव में परवान चढ़ती हैं और नतीजे आने के बाद धूल में मिल जाती हैं। ज़िला बनाने की माँग पिछले 31 वर्षों से लगातार उठ रही है। दिलचस्प यह है कि यहां से बीजेपी, राजद, कांग्रेस और यहाँ तक कि समता पार्टी तक के विधायक चुनकर विधानसभा पहुँचे। सबने अपने भाषणों में आवाज़ बुलंद की, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला।चुनाव आते ही नेताओं की ज़ुबान पर "रोसड़ा ज़िला" ज़रूर आ जाता है। आंदोलन भी होते हैं, ज्ञापन भी दिए जाते हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव बीतता है, यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला जाता है। जनता की पीड़ा वहीँ की वहीँ। सड़क, अस्पताल, शिक्षा और प्रशासनिक सुविधाओं की कमी के बीच ज़िले की पहचान अब तक कागज़ों तक ही सीमित है।सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर भरोसा किस पर किया जाए? किस नेता की बात को अंतिम माना जाए? जब सभी दलों के प्रतिनिधि सिर्फ़ आश्वासन की राजनीति कर रहे हों, तो जनता के पास विकल्प ही क्या बचता है?रोसड़ा की जनता अब और ठगे जाने के मूड में नहीं है। अगर हर चुनाव में ज़िले का सपना दिखाकर मत हासिल किया जाएगा और बाद में वादे से किनारा कर लिया जाएगा, तो आने वाले समय में जनता का आक्रोश नेताओं को भारी पड़ सकता है।अब वक़्त आ गया है कि जनता खुद ठोस रणनीति बनाए और ज़िला बनने की माँग को चुनावी शोर-शराबे से आगे ले जाकर स्थायी आंदोलन का रूप दे। क्योंकि यह सच है—जो अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ता, उसके हिस्से में जीत कभी नहीं आती।"

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